नई दिल्ली/कोलकाता ।। कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सौमित्र सेन के खिलाफ राज्यसभा में महाभियोग का प्रस्ताव पारित हो जाने के बाद उनके इस्तीफे ने नई कानूनी बहस शुरू कर दी है। अब इस मामले में अंतिम निर्णय राष्ट्रपति और लोकसभा की अध्यक्ष द्वारा लिया जाएगा।
लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष कश्यप ने कहा कि राष्ट्रपति को यह प्रमाणित करना होगा कि सेन का इस्तीफा पद छोड़ने की इच्छा से प्रेरित नहीं बल्कि सजा (महाभियोग) से बचने के लिए दिया गया है।
कश्यप ने कहा कि यदि राष्ट्रपति विभिन्न कानूनी एवं संवैधानिक पहलुओं को सत्यापित करने के बाद सेन का इस्तीफा स्वीकार कर लेती हैं तो महाभियोग की कार्यवाही निर्थक होगी।
उन्होंने कहा, “राष्ट्रपति को यह देखना होगा कि क्या इस्तीफा वास्तविक है और इसकी जरूरत है।”
वहीं, सर्वोच्च न्यायालय के वकील रणजी थॉमस ने कहा कि सेन के इस्तीफे ने ‘एक नए कानूनी बहस को जन्म दिया है’ और लोकसभा अध्यक्ष और राष्ट्रपति को उनकी इस्तीफे की वैधता जांचनी होगी।
ज्ञात हो कि कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सौमित्र सेन ने गुरुवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया। सेन के खिलाफ राज्यसभा में महाभियोग का प्रस्ताव पारित हो चुका है।
सेन के वकील सुभाष भट्टाचार्य ने आईएएनएस को बताया, “उन्होंने अपना इस्तीफा राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील और उसकी एक प्रति लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार को भेजी है।”
लोकसभा में सेन के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव पांच सितम्बर को पेश होना था।
सेन के इस्तीफा देने की वजह के बारे में पूछे जाने पर भट्टाचार्य ने कहा, “उन्होंने उम्मीद नहीं की थी राज्यसभा में अपनाया गया मतदान का तरीका महाभियोग के पक्ष में चला जाएगा। लोकसभा में भी इस तरीके का अनुसरण किया जाएगा। उन्हें इस्तीफा देने का अधिकार है इसलिए उन्होंने इस्तीफा दे दिया।”
उन्होंने कहा, “लेकिन हमारी लड़ाई खत्म नहीं हुई है। हमारे पास न्यायालय में जाने का विकल्प खुला है।”
चूंकि सेन ने इस्तीफा दे दिया है इसलिए अब लोकसभा में उनके खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता।
ज्ञात हो कि गत 18 अगस्त को सेन के खिलाफ राज्यसभा में महाभियोग का प्रस्ताव पेश किया गया। इसके पक्ष में 189 मत और विरोध में 17 मत पड़े। महाभियोग पर हुई ‘ऐतिहासिक’ चर्चा में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को छोड़कर सभी अन्य पार्टियों ने हिस्सा लिया।
सेन के खिलाफ यदि लोकसभा में प्रस्ताव पारित हो जाता तो सेन देश के ऐसे पहले न्यायाधीश होते जिन्हें संसद कदाचार के लिए हटाती।
उल्लेखनीय है कि उच्च न्यायालय ने वर्ष 1983 में सेन के वकील रहते उन्हें 33.23 लाख रुपये के हेरफेर का दोषी पाया। उच्च न्यायालय ने उन्हें रिसीवर नियुक्त किया था। राज्यसभा में महाभियोग की कार्यवाही के दौरान सेन ने अपने ऊपर लगे आरोपों से इंकार किया था।