समुद्र की गोद में बसा एक बेहद खूबसूरत दर्शनीय स्थल होने के साथ साथ तीर्थ स्थल भी है रामेश्वरम् का रामनाथास्वामी मंदिर। चारों ओर से सागर से घिरा यह मंदिर अपने आप में कई रहस्य और विचित्रता को समेटे हुए है। मान्यता है कि इस मंदिर की स्थापना स्वयं भगवान राम ने की थी और तभी से लेकर हज़ारों वर्ष बाद तक आज भी भक्त इस मंदिर में भगवान शिव के दर्शन करने आते हैं। हिंदू धर्म में रामेश्वरम को चार धाम की तीर्थयात्रा में शामिल किया गया है।
रामेश्वरम मंदिर अपने आप में ही बेहद खास है और इस मंदिर के बारे में ऐसी कई दिलचस्प बातें हैं जिनसे आप अब तक अनजान होंगें। आज हम आपको रामेश्वरम मंदिर की कुछ खास और अनोखी बातों के बारे में ही बताने जा रहे हैं।
रामेश्वरम मंदिर तमिलनाडु
रामेवश्वरम द्वीप को गंधमाधन के नाम से भी जाना जाता था। श्रीराम के आगमन से पूर्व इस स्थल को इसी नाम से जाना जाता था। यह भी मान्यता थी कि उस समय यहां पर पहले से ही शिव मंदिर स्थित था।
चोल और पांड्या राजवंश के काल में रामेश्वरम प्रमुख बंदरगाह हुआ करता था। यहां से रोम, इजिप्ट, चीन, सुमेरिया और अरब आदि देशों को मोती, शंख आदि का निर्यात किया जाता था।
- सन् 1414 में श्रीलंकन के राजा उडाइयान सेतुपथि और पराराजसेकरा आर्यसक्रावर्ती ने रामनाथास्वामी मंदिर का पुनरूद्धार करवाया था।
- 1935 में ब्रिटिश सरकार ने एक स्टाम्प बनाई थी जिस पर रामेश्वरम मंदिर का चित्र बना हुआ था।
पंबन और रामेश्वरम के बीच रेल चलती है। पंबन रेल ब्रिज को भारतीय ब्रिजों की रानी कहा जाता है और ये भारत का पहला और सबसे लंबा समुद्री पुल है। साल 2014 में इस ब्रिज को 100 साल हो चुके हैं। इस पुल पर पहली बार ट्रेन 24 फरवरी, 1914 को चली थी।
रामेश्वरम वह स्थान है जहां पर प्रभु श्रीराम ने अपने सभी पापों का प्रायश्चित करने का संकल्प लिया था। रावण एक ब्राह्मण था और उसकी हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान राम ने इस स्थान पर शिव की आराधना का निर्णय लिया था। रामेश्वरम मंदिर में स्थापित शिवलिंग की स्थावना स्वयं श्रीराम द्वारा की गई है।
भारत के उत्तर में काशी को जो मान्यता दी गई है दक्षिण में रामेश्वरम का भी वही महत्व है। यह हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी से चारों ओर घिरा हुआ एक सुंदर सा शंख के आकार का द्वीप है।
मान्यता है कि श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करने से पहले समुद्र पर पत्थरों से एक पुल का निर्माण किया था। इसी पुल से श्रीराम और वानर सेना ने लंका में प्रवेश किया था किंतु बाद में विभीषण के अनुरोध करने पर श्रीराम ने धनुषकोटि नामक स्थान पर इस पुल को तोड़ दिया था।
वर्तमान समय में इस 30 मील लंबे सेतु के अवशेष सागर में दिखाई देते हैं। यहां के मंदिर का गलियारा विश्व का सबसे लंबा गलियारा है।
रामेश्वरम में 64 तीर्थ या पवित्र जल स्रोत हैं जिनमें से 24 को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। मान्यता है कि इन जल स्रोतों में स्नान करने से मनुष्य के सारे पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।