असम की राजधानी दिसपुर के पास गुवाहाटी में स्थित मां कामाख्या का मंदिर देवी दुर्गा के 51 शक्तिपीठों में से एक है। इस धार्मिक स्थल को तंत्र साधना का गढ़ माना जाता है। देवी सती के इस मंदिर में उनकी योनि की पूजा की जाती है। आइए जानते हैं इस सुप्रसिद्ध कामाख्या मंदिर से जुड़ी कुछ खास बातें।
कामाख्या मंदिर के दर्शन
मान्यता है कि इस मंदिर में स्थापित शिला के पूजन, दर्शन और स्पर्श से मनुष्य को दैवीय कृपा और मोक्ष के साथ मां भगवती का सान्निध्य प्राप्त होता है। यहां योनि के आकार का शिलाखण्ड है, जिसके ऊपर लाल रंग की गेरू के घोल की धारा गिराई जाती है और वह रक्तवर्ण के वस्त्र से ढका रहता है। माना जाता है कि इस योनि में स्वयं माता कामाख्या वास करती हैं।
उमानंद मंदिर
कामाख्या मंदिर से पहले गुवाहाटी शहर के निकट ब्रह्मपुत्र ब्रह्मपुत्र नदी के मध्य भाग में टापू के ऊपर स्थित महाभैरव उमानंद का दर्शन करना आवश्यक है। किवदंती है कि इसी पवित्र स्थान पर समाधिस्थ सदाशिव ने कामदेव को भस्म किया था।
कामाख्या मंदिर में काला जादू
इस मंदिर को तंत्र विद्या का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है। हर साल जून के महीने में मंदिर में अंबुवासी मेला लगता है जिसे देखने के लिए देश के हर कोने से साधु-संत और तांत्रित यहां आकर इकट्ठे होते हैं। कहते हैं कि इस दौरान मां के रजस्वला होने का पर्व मनाया जाता है। इस मेले के दौरान पास में स्थित ब्रह्मपुत्र नदी का पानी भी तीन दिन के लिए लाल रंग का हो जाता है। मंदिर में तांत्रिकों का जमावड़ा रहता है। कहते हैं कि यहां पर तांत्रिक तंत्र विद्या सीखने के लिए भी आते हैं।
कामाख्या मंदिर का इतिहास
किवंदती है कि 16वीं शताब्दी के दौरान कामरूप प्रदेश के राज्यों में युद्ध छिड़ गया जिसमें कूचविहार के राजा विश्वसिंह विजयी हुए। इस युद्ध में विश्व सिंह के भाई लापता हो गए थे जिन्हें ढूंढने के लिए वे घूमते-घूमते नीलांचल पर्वत पर पहुंचे। यहां उन्हें एक वृद्ध महिला दिखाई दी जिसने राजा को उस स्थान के महत्व के बारे में बताया साथ ही यहां कामाख्या पीठ के होने की भी जानकारी दी। इस बात को जानकर राजा ने इस जगह की खुदाई शुरु करवाई। खुदाई में कामदेव द्वारा निर्मित मूल मंदिर का निचला हिस्सा बाहर निकला। इसी मंदिर के ऊपर राजा ने नया मंदिर बनवाया।
कहा जाता है कि 1564 में मुस्लिम आक्रमणकारियों ने मंदिर को तोड़ दिया था जिसे अगले वर्ष राजा विश्वसिंह के पुत्र नरनारायण ने पुन:निर्मित करवाया।
कामाख्या मंदिर कब बंद रहता है?
इस मंदिर में देवी सती की योनि की पूजा होती है। इसी कारण अम्बुवासी मेले के दौरान तीन दिन तक मंदिर में प्रवेश करना वर्जित होता है। माना जाता है कि ये तीन दिन मां रजस्वला होती है और चौथे दिन मंदिर के कपाट भक्तों के लिए खोले जाते हैं। अम्बुवासी मेले के दौरान चार दिनों तक असम में कोई भी शुभकार्य संपन्न नहीं किया जाता है।
कामाख्या मंदिर की आश्चर्यजनक बातें
- मां कामाख्या के रजस्वला होने पर अम्बुवासी मेले का आयोजन होता है और इस दौरान असम में साधु और विधवा स्त्रियां अग्नि को छूते और आग में पका भोजन भी नहीं खाते हैं।
- यहां प्रसाद के रूप में मां के रजस्वला में भीगा लाल रंग का वस्त्र दिया जाता है।
- कामदेव को श्राप से मुक्ति मिलने के बाद इसी स्थान पर अपना पूर्व रूप प्राप्त हुआ था।
- कहते हैं कि कामाख्या मंदिर के दर्शन तब तक पूरे नहीं होते जब तक कि आप उमानंद मंदिर के दर्शन ना कर लें।
- मान्यता है कि इस स्थान पर देवी सती की योनि गिरी थी और इस वजह से यहां पर माता हर साल तीन दिनों के लिए रजस्वला होती हैं।
कामाख्या मंदिर में दर्शन करने का समय
- सुबह 5.30 बजे पिथास्थान का स्नान।
- प्रात: 6 बजे नित्य पूजा।
- 8 बजे भक्तों के लिए मंदिर के द्वार खुलते हैं।
- दोपहर 1 बजे देवी मां के लिए भोजन तैयार करने हेतु मंदिर के द्वार बंद कर दिए जाते हैं।
- दोपहर 2.30 बजे मंदिर के द्वार भक्तों के लिए दोबारा खोल दिए जाते हैं।
- 5.30 बजे देवी की आरती होती है और इसके बाद मंदिर के द्वार बंद हो जाते हैं।
कैसे पहुंचे
गुवाहाटी में स्थित कामाख्या मंदिर के दर्शन के लिए गोपीनाथ बोरदोलोई हवाई अड्डा सबसे निकटतम एयरपोर्ट है। नजदीकी रेलवे स्टेशन गुवाहाटी रेलवे स्टेरशन है। यहां से बस-टैक्सी सुविधा उपलब्ध है।
अगर आप मां कामाख्या का आशीर्वाद पाना चाहते हैं तो इस मंदिर के दर्शन करने जरूर आएं। कहते हैं कि यहां आने वाले हर भक्त की मनोकामना जरूर पूरी होती है।
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