जम्मू ।। जम्मू एवं कश्मीर के कुछ हिस्सों में लागू सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम (एएफएसपीए) हटाने को लेकर सभी की निगाहें अब राज्यपाल एन. एन. वोहरा के फैसले पर टिकी हैं।
सूत्रों के अनुसार, केंद्र सरकार दो कारणों से इस मामले में राज्यपाल के परामर्श का इंतजार कर रही है। एक तो यह कि इसे लेकर रक्षा एवं केंद्रीय गृह मंत्रालय और राज्य में तैनात सेना तथा प्रदेश सरकार के दृष्टिकोण बिल्कुल अलग हैं।
मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और केंद्रीय गृह मंत्रालय एएफएसपीए हटाने के पक्ष में हैं, जो राज्य के कुछ हिस्सों में पिछले 21 वर्ष से लागू है। वहीं, सेना और रक्षा मंत्रालय का कहना है कि इससे राज्य में आतंकवाद की स्थिति दोबारा पैदा हो सकती है। रक्षा मंत्रालय और सेना हालांकि मानते हैं कि राज्य में हालात सुधरे हैं फिर भी वह राज्य से एएफएसपीए हटाने के पक्ष में नहीं है।
दूसरी महत्वपूर्ण वजह यह है कि वोहरा 1990 के दशक में केंद्र सरकार में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभा चुके हैं। वर्ष 2003 से 2008 में राज्य का राज्यपाल नियुक्त होने के समय तक उन्होंने केंद्र के वार्ताकार के रूप में कश्मीर की स्थिति का अध्ययन किया था और इसलिए माना जाता है कि वह राज्य के जमीनी हालात से अवगत होंगे।
सूत्रों के अनुसार, उनका आकलन इस संदर्भ में निर्णायक होगा और इसलिए सेना, केंद्र सरकार के अधिकारी और राज्य सरकार की निगाहें उनके परामर्श पर टिकी हैं। कैबिनेट सचिव अजित कुमार सेठ और उत्तरी कमांड के सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट के. टी. परनाईक ने भी उनसे इस मुद्दे पर विस्तृत चर्चा की है।
उमर ने पिछले सप्ताह श्रीनगर में पुलिसकर्मियों के एक समारोह में कहा था कि अगले कुछ दिनों में राज्य के कुछ हिस्सों से एएफएसपीए हटा लिया जाएगा।