छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बस्तर क्षेत्र के सरकारी विद्यालयों में अध्यापक यदि बच्चों को नक्सल आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित करने में विफल रहते हैं तो उन्हें जान से भी हाथ धोना पड़ सकता है।
नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा के सरकारी विद्यालय में अध्यापक राजा तोराम ने कहा, “पूरे बस्तर क्षेत्र में अध्यापक बंदूकों के साये में शिक्षा दे रहे हैं।”
तोराम ने कहा, “जब मैं कक्षा में रहता हूं तो मेरा ध्यान दादा (नक्सली) लोगों पर रहता है, जिन्होंने मुझे धमकी दी है कि अगर मैं बच्चों को उनकी बाल इकाई बाल संघम में भर्ती कराने में विफल रहता हूं तो वे मुझे मार डालेंगे।”
उन्होंने कहा कि नक्सल प्रभावित इलाकों में मुश्किल से ही कोई शैक्षणिक गतिविधियां होती हैं।
तोराम ने कहा कि यह तभी सम्भव होता है जब केंद्र सरकार कोई सशस्त्र कार्रवाई करे।
उन्होंने कहा कि नक्सलियों ने उन विद्यालयों में जहां पुलिस या सुरक्षा बल तैनात हैं, उन जगहों पर सरकारी अध्यापकों को शिक्षण कार्य न करने की धमकी दी है।
जहां पर सुरक्षा बल तैनात नहीं हैं वहां पर अध्यापकों से बच्चों को सरकार के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह करने के लिए प्रेरित करने को कहा जाता है।
दंतेवाड़ा के कोंटा खंड में तैनात एक अध्यापक ने कहा कि नक्सली शिक्षा और शिक्षक दोनों से घृणा करते हैं और वे चाहते हैं कि आदिवासी अनपढ़ रहें।
अध्यापक ने कहा कि अनपढ़ आदिवासियों का प्रयोग वे रक्तरंजित गतिविधियों में करना चाहते हैं।
उन्होंने आश्चर्य प्रकट किया कि न तो स्थानीय अधिकारी और न ही शहर के बुद्धजीवी ही इस पर ध्यान दे रहे हैं।
उन्होंने बताया कि अपनी जान बचाने के लिए शिक्षक कक्षाओं से अनुपस्थित रहने को मजबूर होते हैं।
प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक महेंद्र साहू ने कहा, “दंतेवाड़ा और भोपालपटनम (बीजापुर) में शिक्षक अपनी जगह इलाके के बेरोजगार युवकों को निश्चित वेतन पर भेज रहे हैं। नक्सलियों और सरकार से बचने का यह सबसे अच्छा तरीका है।”
राज्य के अपर पुलिस महानिदेशक गिरधारी नायक ने कहा, “इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि बस्तर के आंतरिक इलाकों में शिक्षक जबरदस्त मानसिक दबाव में हैं। नक्सलवाद से शिक्षा व्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित हुई है।”
[सुजीत कुमार]