राखी का त्योहार कब शुरू हुआ, यह कोई नहीं जानता, लेकिन हिंदू पौराणिक प्रसंगों के अनुसार, महाभारत में पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने भगवान कृष्ण की कलाई से बहते खून को रोकने के लिए अपनी साड़ी का किनारा फाड़ कर बांधा था। इस प्रकार उन दोनों के बीच भाई और बहन का बंधन विकसित हुआ तथा श्री कृष्ण ने उसकी रक्षा करने का वचन दिया था। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बांधने की प्रथा चली आ रही है।
इस पर्व के पीछे एक और पौराणिक प्रसंग तथाकथित है, जो कुछ इस प्रकार है – देव और दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ, तब दानव देवताओं पर हावी होते नजर आने लगे। भगवान इन्द्र घबरा कर बृहस्पति के पास गये। वहां बैठी इंद्र की पत्नी इन्द्राणी सब सुन रही थीं। उन्होंने रेशम का धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बांध दिया। वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। लोगों का विश्वास है कि इंद्र इस लड़ाई में इसी धागे की मंत्र शक्ति से विजयी हुए थे।
ऐतिहासिक प्रसंग के अनुसार – राखी के इन धागों ने अनेक कुर्बानियाँ कराई हैं। कहते हैं, मेवाड़ की महारानी कर्मावती को बहादुरशाह द्वारा मेवाड़ पर हमला करने की पूर्वसूचना मिली। रानी लड़ने में असमर्थ थी। उसने मुगल राजा हुमायूं को राखी भेज कर रक्षा की याचना की। हुमायूँ ने मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज रखी और मेवाड़ पहुँच कर बहादुरशाह के विरूद्ध मेवाड़ की ओर से लड़ते हुए कर्मावती और उसके राज्य की रक्षा की।