शाही शादी के लिए राजधानी थिंपू से 71 किलोमीटर दूर पुनाखा में 17वीं शताब्दी के एक किले को पहले दुल्हन की तरह सजाया गया, जहां नरेश औऱ पेमा ने जीने मरने कसमें खाईं। खराब मौसम के बावजूद शाही शादी में करीब 1500 लोग इक्ट्ठा हुए और उन्होंने नववधू को आशीर्वाद दिया। भारत की तरफ से नरेश की शादी के जश्न में भूटान में भारत के राजदूत पवन के. वर्मा, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल एम. के. नारायणन और राज परिवार के सदस्यों समेत करीब 300 मेहमानों ने हिस्सा लिया।
शाही शादी गुरुवार की सुबह चार बजे ब्रह्म मुहुर्त में 100 बौद्ध भिक्षुओं की विशेष प्रार्थना के साथ आरंभ हुई। प्रार्थना मुख्य बौद्ध पुरोहित जे. खेनपो की देखरेख में हुई। भूटान नरेश वागचुक की शादी सुबह चार बजे से शुरू होकर करीब दो घटे तक चली। इसके बाद उन्हें और पेमा को पति पत्नी घोषित कर दिया गया। शादी की रस्में पूरी होने के बाद दोनों बौद्ध मठ में विशेष रूप से व्यवस्थित कक्ष में कैमरे के सामने आए। शादी के बाद नरेश और महारानी ने किले के बाहर एक मैदान में जमा हजारों लोगों के साथ मिलकर नृत्य किया और अपनी शादी की खुशिया उनके साथ बांटी। शादी के जश्न में आए लोगों को भूटान की 20 घाटियों से आए 60 बेहतरीन रसोईयों के हाथों का बना हुआ पारंपरिक भूटानी भोजन परोसा गया।
इस शाही दावत में कुछ भारतीय पकवान भी शामिल किए गए थे। शादी के बाद शाही जोड़ा शुक्रवार को सड़क मार्ग से पुंखा से थिपू जाएगा। पूरे रास्ते उन्हें देखने ओर उनका स्वागत करने के लिए लोगों के जुटने की संभावना है। इस विवाह का सीधा प्रसारण भूटान ब्राडकास्टिंग सर्विस टीवी’ पर भी किया गया जिसे करीब सात लाख लोगों ने देखा। थिंपू और इसके आसपास रहने वाले युवाओं के लिए यह विवाह किसी ऐतिहासिक घटना से कम नहीं है। वे इससे पहले कोई शाही शादी नहीं देख पाए हैं। इस मौके पर भूटान पोस्टल कॉपरेरेशन लिमिटेड ने 60 हजार डाक टिकिट भी जारी किए हैं जिस पर शाही जोड़े की तस्वीरें हैं। सरकार ने देश में तीन दिन का अवकाश घोषित कर दिया है, जिससे लोग शादी के जश्न में शामिल हो पाएं। आपको बता दें कि सादगी और अच्छे व्यवहार के लिए चर्चित वांगचुक ने 6 नवंबर 2008 को पिता जिग्मे सिंग्ये वांगचुक के स्थान पर गद्दी संभाली थी।