ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत और चीन यानी बेसिक के देश जहां क्योटो प्रोटोकाल की समय सीमा बढ़ाए जाने पर जोर दे रहे हैं जबकि अमेरिका ने इसका विरोध किया है।
बेसिक देशों का कहना है कि क्योटो प्रोटोकाल के लिए एक दूसरा प्रतिबद्ध अवधि ‘आवश्यक’ है साथ ही ये देश पूर्व शर्तो के साथ कानूनी रूप से बाध्यकारी करार पर चर्चा के लिए भी तैयार हैं।
चीन के मुख्य वार्ताकार और बेसिक के अध्यक्ष जी झेनहुआ ने कहा, “ऐसी रपटें कि बेसिक के देश बंटे हुए हैं, एक अफवाह है और दुनिया को यह संदेश देने के लिए हम सभी यहां उपस्थित हैं कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए हम दृढ़ता से एकजुट हैं।”
चीन के रुख का समर्थन करते हुए भारत की केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन ने कहा कि देश यदि वास्तव में जलवायु परिवर्तन से निपटना चाहते हैं तो क्योटो प्रोटोकाल आगे अवश्य जारी रहना चाहिए।
वहीं, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) ने कहा कि कार्बन उत्सर्जन में कटौती के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी और स्वैच्छिक उपाय दोनों महत्वपूर्ण हैं और दोनों को एक दूसरे के खिलाफ खड़ा नहीं होना चाहिए।
यूएनईपी के कार्यकारी निदेशक अचिम स्टेनर ने आईएएनएस से कहा, “कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए कुछ देशों के स्वैच्छिक उपाय और कानूनी बाध्यता दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और इन्हें एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा नहीं करनी चाहिए। दोनों उपाय महत्वपूर्ण हैं। यह दोनों में से एक/अथवा नहीं हो सकता।”
उन्होंने कहा, “आप पूरी तरह से स्वैच्छिक उपायों पर निर्भर नहीं रह सकते लेकिन ये उपाय आवश्यक हैं क्योंकि ये उपाय जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभाव से निपटने के लिए क्षेत्रीय स्तर पर देशों की प्रतिबद्धता दर्शाते हैं।”
संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की-मून ने दुनिया को आगाह किया कि जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर खोने के लिए समय नहीं है। उन्होंने इस मुद्दे से निपटने के लिए विश्व के नेताओं से राजनीतिक नेतृत्व का प्रदर्शन करने की अपील की।
डरबन में सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए मून ने कहा, “हमारे पास खोने के लिए समय नहीं है और जलवायु परिवर्तन की वार्ताओं में प्रगति की जरूरत है।”
उन्होंने कार्बन उत्सर्जन में कटौती के लिए कानून बाध्यता वाली संधि पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि यह संधि सभी पर लागू होनी चाहिए चाहे वह अमीर, गरीब, छोटे या बड़े देश हों।