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राज्‍यपाल शासन का इतिहास रहा है कश्‍मीर में, पढ़िए ख़बर

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जम्‍मू कश्‍मीर की राजनीति ने एक बार फिर करवट ले ली है। पीडीपी और भाजपा का गठबंधन टूटने के बाद राज्‍य में राज्‍यपाल शासन लागू करने की सिफारिश राष्‍ट्रपति के पास तत्‍काल भेज दी गई। राष्‍ट्रपति राम नाथ कोविंद ने भी यथा शीघ्र इस सिफारिश को मंजूर कर लिया। जम्‍मू कश्‍मीर में सरकार गिरने के 24 घंटे के भीतर ही राज्‍यपाल शासन लग गया और सारी कमान राज्‍यपाल एन एन वोहरा के हाथ में आ गई।

हालांकि जम्‍मू कश्‍मीर के लिए यह कोई नई बात नही है। जम्‍मू कश्‍मीर के इतिहास में अब तक 11 बार चुनाव हुए हैं। जिनमें से 8वीं बार यह स्थिति आ गई कि सरकार को निरस्‍त करके राज्‍यपाल को प्रदेश की कमान अपने हाथ में लेनी पड़ी है।

क्‍या होता है राज्‍यपाल शासन

जम्‍मू कश्‍मीर में जब भी विधाय‍िका के स्‍तर पर कोई भी दल सरकार बनाने में असफल रहती है तो प्रदेश का काम-काज सुचारू रूप से चलाने के लिए जम्मू कश्‍मीर की धारा 92 के तहत प्रदेश सारी कमान राज्‍यपाल को सौंप दी जाती है। जो कि 6 माह तक रहता है। इसी को राज्‍यपाल शासन कहते हैं। इस बार भी ऐसा ही कुछ हुआ है जब भाजपा ने पीडीपी से समर्थन वापस ले लिया है और प्रदेश में कोई भी दल शासन करने की स्थिति में नही है तो प्रदेश की कमान राज्‍यपाल को सौंपने की तैयारी पूरी हो चुकी है और प्रदेश में राज्‍यपाल शासन की मंजुरी राष्‍ट्रपति ने दे दी है।

कब कब लगा है जम्‍मू कश्‍मीर में राज्‍यपाल शासन

26 मार्च 1977 में सबसे पहली बार जम्‍मू कश्‍मीर में राज्‍यपाल शासन लगा था। कांग्रेस ने नेशनल कांफ्रेस से समर्थन वापस लेकर अब्‍दुल्‍ला सरकार गिरा दी थी। यह स्थिति 9 जुलाई 1977 तक चली। 9 जुलाई को चुनाव जीत कर एक बार फिर नेशनल कांफ्रेस के अब्‍दुल्‍ला जम्‍मू कश्‍मीर के मुख्‍यमंत्री बनें।

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इसके बाद 1982 में शेख अब्‍दुल्‍ला के निधन के बाद एक बार फिर जम्‍मू कश्‍मीर की राजनीति में परिवर्तन आए। बेटे फारुख अब्‍दुल्‍ला प्रदेश के मुख्‍यमंत्री बने। इस बात से नाखुश गुलाम शाह ने कांग्रेस से हाथ मिला लिया और अपने साथी विधायकों के साथ मिलकर मौजूदा सरकार को गिरा दिया और खुद मुख्‍यमंत्री बन गए। 4 मार्च 1986 को कांग्रेस ने शाह की ओर से अपना हाथ खींच लिया और सरकार गिर गई। एक बार फिर परिस्थिति बन गई और 6 मार्च 1986 को जम्‍मू कश्‍मीर में एक बार फिर राज्‍यपाल शासन लग गया। जो कि 7 नवंबर 1986 तक रहा।

1986 में एक बार जम्‍मू कश्‍मीर में चुनाव हुए। इस बार फिर नेशनल कांफ्रेस की जीत हुई और फारुख अब्‍दुल्‍ला सीएम बने। सीएम बनने के चार साल बाद 1990 में जगमोहन को जम्‍मू कश्‍मीर का राज्‍यपाल नियुक्‍त किया गया। इस पर फारुख अब्‍दुल्‍ला नाराज हुए और विरोध के तौर पर मुख्‍यमंत्री पद से इस्‍तीफा दे दिया। मुख्‍यमंत्री के इस्‍तीफे के बाद प्रदेश में एक बार फिर राज्‍यपाल शासन लग गया। इस बार राज्‍यपाल शासन 6 साल चला और 9 अक्‍टूबर 1996 तक रहा। 1996 मे हुए चुनाव में एक बार फिर नेशनल कांफ्रेस को सफलता मिली और फारुख तीसरी बार मुख्‍यमंत्री बन गए।

वर्ष 2002 में 18 अक्‍टूबर से राज्‍यपाल शासन लागू हो गया जो कि 2 नवंबर 2002 तक चला। पांचवी बार 11 जुलाई 2008 से 5 जनवरी 2008 तक राज्‍यपाल शासन लागू किया गया। छठी बार 2015 में 8 जनवरी से 1 मार्च तक राज्‍यपाल शासन लागू करना पड़ा। फिर 7 जनवरी 2016 को एक बार फिर राज्‍यपाल शासन लागू हुआ जो कि 4 अप्रेल तक चला।

इस बार जब भाजपा ने पीडीपी से अपना समर्थन वापस ले लिया है तो एक बार फिर 20 जून से जम्‍मू कश्‍मीर में राज्‍यपाल शासन लग गया है। इस बार दोनों घटक दलों के बीच कोई बड़ा मतभेद सामने नहीं आया है। रमजान से पहले सब ठीकठाक ही लग रहा था। यहां तक की महबूबा मुफ्ति के आग्रह पर केंद्र ने रमजान के पवित्र महीने में सीजफायर का ऐलान भी किया और उस पर अमल भी किया। लेकिन शांति की इस कोशिश के बदले प्रदेश में आतंकी घटनाएं बढ़ गई।

पिछले एक माह में हुई आतंकी वारदातों और ईद से पहले आतंकियों ने ‘राइजिंग कश्‍मीर’ के संपादक सुजात बुखारी को गोलियों से भून दिया। फिर सेना के एक सिपाही औरंगजेब जो छुट्टियों पर अपने घर गया था उसे अगवा कर बेरहमी से मार दिया। इस सब वारदातों ने सोशल मीडिया में लोगों के गुस्‍से को भड़का दिया और लोग सरकार के सीजफायर के निर्णय की आलोचना करने लगे।

इसके अलावा महबूबा मुफ्ति इतना होने के बाद भी केंद्र सरकार से ये चाह रहीं थी कि अलगाव वादियों से बात की जाए। जो भारतीय जनता पार्टी की सरकार को मंजूर नहीं था। इसके अलावा जम्‍मू कश्‍मीर में सेना के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने के मामले तेज हो गए थे इससे भी सरकार की किरकिरी हो रही थी। जबकि महबूबा मुफ्ति इन एफआईआर को चेक बैलेंस की तरह इस्‍तेमाल कर रही थीं। केंद्र सरकार इससे खुश नहीं थी वह चाहती थी कि किसी भी स्‍तर पर सेना के खिलाफ कोई कार्यवाही न हो।

इन सब गतिविधियों के बाद केंद्र सरकार के पास कोई और रास्‍ता ही नहीं बचा था तो उसने पीडीपी से अपना समर्थन लेकर सरकार गिरा दी और प्रदेश में राज्‍यपाल शासन लगा दिया।

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