भारत एक लोकतांत्रिक देश है भारत में किसी व्यक्ति को सजा संविधान के कानून के अनूसार दिया जाता है। कानून की अपनी एक प्रक्रिया होती है जिसके आधार पर ही काम होता है। क्या आप जानते हैं कानून कैसे बनता हैं? कानून बनने की प्रक्रिया में क्या स्टेप होते हैं जानने के लिए इसे पढ़े।
कानून क्या होता है?
किसी भी देश राज्य या समाज को चलाने के लिए। व्यवस्था और अनुशाषण बनाए रखने के लिए कुछ नियम की जरूरत होती है। उस नियम और कानून में बहुत ही छोटा सा फर्क होता है। जहां नियम काम करने के तरीके को बताता है वहीं कानून उस तरीके और अनुशाषण के टूटने पर उठाए जाने वाले कदम को बताता है। कानून का उल्लेख संविधान में किया गया है। कानून में समय-समय पर संसोधन की जाती है और कभी-कभी नये कानून भी बनाए जाते हैं। भारत में कानून बनाने का अधिकार विधायिका को है।
भारत में कितने स्तर पर कानून बनते हैं?
भारत में तीन तरह से कानून का निर्माण होता है। एक केंद्र स्तर पर कानून बनती है जो पूरे देश में लागू होती है। दूसरा प्रदेश स्तर पर कानून बनती है जो किसी अमुख प्रदेश को ध्यान में रखकर बनाया जाता है। तीसरा राज्य और प्रदेश के द्वारा मिल कर बनाया जाता है।
कानूनों को तीन सूची के अंतर्गत रखा जाता है।
1. राज्य सूची
2. केंद्रिय सूची
3. समवर्ती सूची
सांसद मे कानून कैसे बनती है?
सबसे पहले सदन में विधेयक को रखा जाता है।
सरकार को जब ऐसा लगता है की किसी मुद्दे पर कानून बनाने की जरूरत है तो सरकार कैबिनेट में इस मुद्दे पर चर्चा करती है। चर्चा होने के बाद कानून के मसौदे की ड्राफ्टिंग की जाती है। ड्राफ्टिगं के बाद कानून कानून का ड्राफ्ट जिसे विधेयक कहा जाता हो, को सदन के पटल पर रखा जाता है। सदन में पक्ष और विपक्ष के सदस्य इस विधेयक पर चर्चा करते हैं। पक्ष विपक्ष के सदस्यों के बीच इस मुद्दे पर बहस के बाद कानून को पास करने की प्रक्रिया शूरू की जाती है। कभी-कभी विधेयक पर आम सहमती नहीं बन पाती है। इस हालत में सदन में मतदान की नौबत आती है। अगर सदन में विधेयक के पक्ष में अधिक वोट पड़ते हैं तो विधेयक को पास माना जाता है। अगर विधेयक किसी गतिरोध के कारण या कम समर्थन के कारण पास नहीं हो पाता है तो कानून नहीं बन पाता है।
अधिकतर कानून लोकसभा और राज्य सभा दोनों सदन से पास होने के बाद ही बनती है।
सदन से पास हो जाने के बाद विधेयक को राष्ट्रपति के पास उनके हस्ताक्षर के लिये भेजा जाता है। राष्ट्रपति के पास यह अधिकार होता है कि वो अधिकतम दो बार विधेयक को पुनर्विचार के लिए विधायिका को भेज सकता है। जब राष्ट्रपति के पास से विधेयक पर हस्ताक्षर हो जाता है तो यह कानून बन जाता है।
राज्य स्तर पर कानून कैसे बनती है?
राज्य स्तर पर कानून विधानसभा से बनाया जाता है। राज्यों के विधानसभा में पहले विधेयक को पारित किया जाता है। विधानसभा से विधेयक के पारित या पास हो जाने के बाद विधेयक को राज्यपाल के अनुमोदन के लिये भेजा जाता है। राज्य में विधेयक के उपर राज्यपाल का हस्ताक्षर होता है। राज्यपाल के पास भी यह अधिकार होता है कि वो विधेयक पर फिर से विचार करने के लिये अधिकतम दो बार वापस सदन को भेज सकता है। एक बार राज्यपाल के हस्ताक्षर हो जाने के बाद कानून अस्तित्व में आ जाती है।
अध्यादेश क्या होता है ?
अध्यादेश सरकार के लिए एक विशेषाधिकार होती है। इसकी जरूरत तब पड़ती है, जब सरकार किसी बेहद खास विषय पर कानून बनाने के लिए बिल लाना चाहती है लेकिन संसद के दोनों सदन या किसी भी एक सदन का सत्र न चल रहा हो। इस हालत में सरकार अध्यादेश लेकर आती है जिसके तहत यह सीधा कानून बन जाता है। फिर जब सदन की कार्यवाही की शुरूआत होती है तो इसे सदन से पास करवाया जाता है। अध्यादेश की अवधी 180 दिनों की होती है इसके बाद यह निरस्त हो जाती है।
संविधान का अनुच्छेद 123 सरकार को अध्यादेश लाने का अधिकार देती है।
अध्यादेश से जुड़े कुछ महत्वपुर्ण तथ्य
- किसी एक ही विषय पर एक से अधिक बार अध्यादेश लाया जा सकता है।
- भारत में अबतक 1950 से लेकर अबतक 700 से अधिक बार अध्यादेश लाया जा चुका है।
- वर्ष 1993 में सर्वाधिक 93 अध्यादेश सरकार ने लाये थे।
- वर्ष 1963 में एक भी अध्यादेश नहीं लाये गये थे।
- अध्यादेश में अगर मनमाना पूर्ण कानून बनाया जाता है तो इसे अदालत में चुनौती दी जा सकती है।
- अध्यादेश के सहारे नागरीक के मूल अधिकार का अतिक्रमण नहीं किया जा सकता है।
- अध्यादेश को सरकार किसी भी समय वापस ले सकती है।