कई महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई कर रहे सीबीआई जज जस्टिस लोया की संदिग्ध मौत पर यह सवाल था कि यह प्राकृतिक मृत्यु है या किसी साजिश का हिस्सा है। निचली अदालत ने प्रारंभिक जांच के आधार पर इसे प्राकृतिक मृत्यु कहा।
किन्तु कुछ लोगों को ऐसा लगता था कि इसके पीछे भाजपा के बड़े नेता की साजिश है। जनहित याचिका के जरिए सुप्रीम कोर्ट में उन्होंने इसके लिए याचिका लगाई जिस पर याचिका कर्ताओं को सुप्रीम कोर्ट से तगड़ी डाट सुनने को मिली।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह सोच लेना पूरी तरह से अर्थहीन है कि सुप्रीम कोर्ट के चार जज झूठ बोल रहे हैं। ऐसे में कोर्ट यह हिदायत देती है कि राजनीतिक लड़ाई को मैदान तक ही सीमित रखा जाए उसे कोर्ट में लाने की जरूरत नहीं है।
इस सुनवाई को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा समेत चार जजों की बेंच ने सुना और सर्वसहमती से इसे खारिज कर दिया। जजमेंट में कहा गया कि पीआईएल जरूरी है लेकिन इसका गलत इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। इतना ही नहीं इस याचिका को आपराधिक अवमानना कहा और ये भी चेतावनी दी वैसे इसमें दंड का प्रावधान है लेकिन हम इस बार बिना दंड के ही सिर्फ याचिका खारिज कर रहे हैं।
ज्ञात हो कि जस्टिस लोया गुजरात के फर्जी इंकाउंटर मामले में सुनवाई कर रहे तो और उनकी संदिग्ध परिस्थितियों में दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई। जस्टिस की मृत्यु के बाद से ही ये अटकलें लगाई जा रही थी कि यह मृत्यु प्राकृतिक है या कोई षणयंत्र। इसके बाद यह मामला अदालत गया वहां जस्टिस लोया के साथ उपस्थित 4 जजों के बयान के आधार पर इसे प्राकृतिक मृत्यु कहा गया।
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