किडनी ट्रांस्प्लांट एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक इंसान की किडनी किसी दूसरे व्यक्ति के शरीर में फिट कर दी जाती है। देश के कई मंत्रियों की किडनी ट्रांस्पलांट की खबरे आ चुकी हैं। आज हम आपको यही बताने वाले हैं कि ये किडनी ट्रांस्प्लांट होता क्या है।
क्या है किडनी
किडनी जिसे हिंदी में गुर्दा भी कहा जाता है। ये मानव शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग होता है जिसका प्रमुख कार्य खून को साफ कर मूत्र बनाना होता है। इसे मूत्र प्रणाली का अंग भी कहा जा सकता है। शरीर में दो किडनी होती हैं और इंसान एक किडनी के साथ भी जीवित रह सकता है।
किडनी के द्वारा इलेक्ट्रोलाइट, एसिड संतुलन और ब्लडप्रेशर को कंट्रोल किया जाता है। इनके मल को मूत्र कहा जाता है जिसमें प्रमुख रूप से यूरिया और अमोनिया होता है। इंसान के शरीर में किडनी की लंबाई लगभग 11 से 14 सेमी होती है और ये 6 सेमी चौड़ी और 3 सेमी मोटी होती है।
क्या है किडनी ट्रांस्प्लांट
अगर किसी व्यक्ति की दोनों किडनी खराब हो जाती हैं या किसी गंभीर बीमार के कारण उसकी दोनों किडनियां काम करना बंद कर देती हैं तो ऐसे में उसे किसी दूसरे जीवित या मृत व्यक्ति की एक स्वस्थ किडनी ऑप्रेशन द्वारा लगाई जाती है। इस प्रक्रिया को ही किडनी ट्रांस्प्लांट कहा जाता है।
क्या है किडनी ट्रांस्प्लांट की पूरी प्रक्रिया
किडनी ट्रांस्प्लांट करने से पहले डॉक्टर किडनी लेने वाले और किडनी दाता दोनों की फिटनेस की जांच करते हैं। ब्लड ग्रुप मैच करने के लिए दोनों के खून के वहाइट ब्लड सेल्स में मौजूद एच.एल्ए की मात्रा में साम्यता और टिश्यू क्रॉस मैचिंग की जांच से किडनी प्रत्यारोपण होने या ना होने को सुनिश्चित किया जाता है।
ऑप्रेशन से पहले मरीज़ के रिश्तेदारों और किडनी देने वाले व्यक्ति के रिश्तेदारों की सहमति भी ली जाती है। नेफ्रोलॉजिस्ट, यूरोलॉजिस्ट, पैथोलॉजिस्ट और अन्य प्रशिक्षण प्राप्त सहायकों के संयुक्त प्रयास से ये ऑप्रेशन हो ता है। न्यूरोलॉजिस्ट इस ऑप्रेशन को करता है। किडनी पाने वाले और देने वाले, दोनों ही मरीज़ों का ऑप्रेशन एकसाथ किया जाता है। 3-4 घंटे के इस ऑप्रेशन में किडनी सफलतापूर्वक ट्रांस्प्लांट कर दी जाती है।
जरूर पढ़ें – कुछ ऐसी होगी सोनम की शादी
अगर क्रोनिक किडनी रोग के मरीज़ की दोनों किडनी पूरी तरह से खराब हो जाती हैं तो उसे सप्ताह में तीन बार नियमित डायलिसिस और दवा की जरूरत पड़ती है। किडनी ट्रांस्प्लांट को जीवन के उपहार के रूप में माना जाता है। इकसे बाद मरीज़ सामान्य जीवन जी सकता है।
देश में तकरीबन 5 से 6 लाख ऐसे मरीज़ हैं जिन्हें तत्काल किडनी ट्रांस्प्लांट की जरूरत है जबकि सिर्फ 3 से 4 हज़ार लोगों की ही किडनी ट्रांस्प्लांट हो पाती है। इसकी एक बड़ी वजह जागरूकता की कमी भी है और डोनर मरीज़ का ब्लड ग्रुप मैच ना मिल पाना भी। ऐसे में एबीओ इनकंपेटिबल विधि से किडनी ट्रांस्प्लांट की जाती है।
अब चिकित्सा के क्षेत्र में इतना विकास हो चुका है कि ब्लड ग्रुप मैच ना होने पर भी किडनी ट्रांस्पलांट की जा सकती है। लेकिन किडनी डोनर्स की कमी वजह से लाखों लोग मर रहे हैं।
हिंदी जगत से जुड़ी ऐसी अनोखी जानकारी पाने के लिए like करें हमारा Facebook पेज।