नई दिल्ली ।। योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कहा है कि केवल अनुदानों से देश में शिक्षा व्यवस्था में सुधार नहीं होगा। किसी भी अर्थपूर्ण परिवर्तन के लिए शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार आवश्यक है।
‘हिन्दुस्तान टाइम्स लीडरशिप समिट’ में शुक्रवार को अहलूवालिया ने कहा, “12वीं पंचवर्षीय योजना में प्राथमिक, माध्यमिक शिक्षा के लिए अब तक की सबसे बड़ी राशि का प्रावधान किया गया है। लेकिन सिर्फ अनुदानों से व्यस्था में सुधार नहीं होगा, जब तक कि इसकी संरचनात्मक समस्याओं में सुधार नहीं किया जाता।”
12वीं पंचवर्षीय योजना के तहत सरकार प्रौढ़ शिक्षा को पूरा करने, माध्यमिक शिक्षा को व्यापक बनाने और उच्च शिक्षा में वर्ष 2017 तक 20 प्रतिशत नामांकन बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। लेकिन अहलूवालिया ने कहा कि शिक्षा व्यवस्था में गुणवत्ता बड़ा मुद्दा है। हाल के कुछ अध्ययनों में पाया गया है कि पांचवीं कक्षा के छात्र दूसरी की पाठ्य पुस्तकें भी नहीं पढ़ पाते। यही स्थिति गणित विषय में है।
गुणवत्ता का यह अंतर सरकारी विद्यालयों में अधिक देखने को मिलता है। अहलूवालिया के मुताबिक, “इस पर कभी ध्यान नहीं दिया गया कि हमारे देश में स्कूली शिक्षा में असमानता दूसरे विकासशील देशों की तुलना में कहीं अधिक है। शिक्षा में असमानता का यह कारण आय में बड़े अंतर को लेकर है।”
इसी तरह की चिंताएं उच्च शिक्षा तथा शीर्ष तकनीकी एवं चिकित्सा संस्थानों को लेकर भी है, जिसकी आलोचना कई जानेमाने शिक्षाविदों तथा उद्योगपतियों ने भी की है।
उन्होंने यह भी कहा कि शिक्षा में गुणवत्ता से समझौता किए बगैर देश में शैक्षणिक आधारभूत संरचना में विस्तार के लिए निजी क्षेत्र को इसकी अनुमति दिए जाने से सम्बंधित नियमों में कुछ परिवर्तन की आवश्यकता है। उनके अनुसार, “इस वक्त निजी क्षेत्र को विस्तार की अनुमति जिन नियमों के तहत दी जाती है, वह बहुत अनुकूल नहीं है।”