केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के एक अधिकारी ने आईएएनएस को बताया कि पश्चिमी मिदनापुर जिले में प्रतिबंधित संगठन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के पोलितब्यूरो के सदस्य से मिलता-जुलता एक शव मिला।
वहीं, नई दिल्ली में केंद्रीय गृह सचिव आर.के. सिंह ने कहा, “जम्बोनी क्षेत्र के जंगली इलाके में मुठभेड़ के बाद 99 फीसदी सम्भावना है कि किशनजी मारा गया। मुठभेड़ स्थल पर पहुंचे अधिकारियों ने बताया कि मारा गया व्यक्ति किशनजी ही है।”
पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से हालांकि, 52 वर्षीय नक्सली नेता और भाकपा-माओवादी में तीसरा स्थान रखने वाले किशनजी के मारे जाने की पुष्टि नहीं की गई है।
एक नक्सल निरोधी अधिकारी ने कोलकाता में कहा कि किशनजी के शव की पहचान एके-47 राइफल से हुई जिसे लेकर वह चलता था। एक-47 राइफल केवल वरिष्ठ नक्सली नेताओं के पास होती है।
किशनजी इसके पहले सुरक्षा बलों और पुलिस की कार्रवाई से बचता रहा था। वह नक्सली नेताओं में सबसे अधिक अनुभवी और तीन दशकों से अधिक समय से नक्सली अभियान में शामिल था।
यह अभियान पश्चिमी मिदनापुर के पुलिस अधीक्षक प्रवीण त्रिपाठी के नेतृत्व में हुआ। अभियान में सीआरपीएफ और कोबरा कमांडों शामिल थे।
ज्ञात हो कि आसानी से पकड़ में न आने वाले किशनजी पिछले समय में मीडिया को कई बार साक्षात्कार दे चुका था। कैमरा के सामने वह केवल अपनी पीठ दिखाता था और अपने सिर व चेहरे को तौलिये से ढक कर रखता था। उसके एक कंधे पर बंदूक दिखाई देती थी।
सुरक्षा बलों ने इसके पहले इस सूचना पर कि नक्सली पश्चिमी मिदनापुर के बुरीशोल जंगली इलाके में छिपे हुए हैं, बुधवार को किशनजी और सुचित्रा महतो सहित माओवादी नेताओं की तलाश शुरू की। सुरक्षा बलों ने जब जंगल में तलाशी अभियान शुरू किया तो नक्सलियों के साथ उनकी मुठभेड़ हो गई।
किशनजी यदि वास्तव में मारा गया है तो जून 2009 से पश्चिमी मिदनापुर, बांकुरा और पुरुलिया में नक्सल निरोधी अभियान में लगे पुलिस-अर्धसैनिक बलों के लिए यह सबसे बड़ी सफलता है।
उल्लेखनीय है कि राज्य में गत मई में सत्ता में आने वाली तृणमूल कांग्रेस सरकार की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शुरू में नक्सलियों के खिलाफ नरम रुख अख्तियार किया लेकिन नक्सलियों द्वारा तृणमूल कांग्रेस के कई कार्यकर्ताओं की हत्या किए जाने के बाद बनर्जी ने सुरक्षा बलों को अपनी कार्रवाई दोबारा शुरू करने की छूट दे दी।