चीन ने कथित रूप से सम्मेलन में दलाई लामा के हिस्सा लेने पर आपत्ति की है और नई दिल्ली से अपील की है कि वह इस सम्मेलन को स्थगित कर दे। सम्मेलन में 46 देशों से करीब 900 बौद्ध विद्वान और अन्य लोग हिस्सा ले रहे हैं।
सम्मेलन को टेलीविजन के माध्यम से सम्बोधित करते हुए दलाई लामा ने इस तरह के सम्मेलनों का स्वागत किया।
उन्होंने कहा, “इस सम्मेलन ने बौद्ध लोगों को मिलने के लिए एक अति वांछित और महत्वपूर्ण अवसर उपलब्ध कराया है। हमें ज्ञान एवं अनुभव को बढ़ाने और उसे बांटने की जरूरत है।”
उम्मीद की जा रही है कि हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में रहने वाले दलाई लामा 30 नवंबर को नई दिल्ली आएंगे और समारोह में समापन भाषण देंगे।
सम्मेलन के आयोजक अशोका मिशन ने सम्मेलन का उद्घाटन करने के लिए राष्ट्रपति को आमंत्रित किया था।
विश्वसनीय सूत्रों ने आईएएनएस को बताया कि राष्ट्रपति कार्यालय ने एक सप्ताह पहले आयोजकों को बताया कि पाटील का समारोह में उपस्थित हो पाना सम्भव नहीं हो सकेगा।
अशोका मिशन ने प्रधानमंत्री को भी मुख्य अतिथि के रूप में समारोह में आने का न्योता दिया था लेकिन मामले पर चीन की संवेदनशीलता को देखते हुए प्रधानमंत्री भी समारोह से दूर रहे।
सिक्किम के राज्यपाल बाल्मीकि प्रसाद सिंह ने समारोह की अध्यक्षता की और भारतीय सांस्कृतिक सम्बंध परिषद (आईसीसीआर) के अध्यक्ष और प्रख्यात विद्वान कर्ण सिंह समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए।
सम्मेलन की आयोजन समिति के सदस्य अशोक के. वांगदी ने आईएएनएस को बताया कि समारोह के पहले दिन करीब 1000 बौद्ध विद्वान, विचारक और 30 देशों से अधिक अनुयायी अशोका होटल के सम्मेलन कक्ष में एकत्र हुए।
उन्होंने बताया कि चीन से 40 सदस्यों के एक शिष्टमंडल के आने की उम्मीद थी लेकिन दलाई लामा के समापन भाषण पर बीजिंग की आपत्ति को देखते हुए केवल सात से आठ बौद्ध विद्वान ही यहां आ सके।
वहीं, चीन की आपत्ति के बावजूद भारत दलाई लामा के मुद्दे पर झुकने को तैयार नहीं है। दलाई लामा समापन भाषण के लिए 30 नवंबर को दिल्ली आएंगे।