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साहित्यकार श्रीलाल शुक्ल पंचतत्व में विलीन

लखनऊ ।। ज्ञानपीठ पुरस्कार एवं पद्मभूषण से सम्मानित साहित्यकार श्रीलाल शुक्ल शुक्रवार शाम पंचतत्व में विलीन हो गए। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के एक निजी अस्पताल में दोपहर करीब 12 बजे उनका निधन हो गया था। वह 86 वर्ष के थे।

शुक्ल का अंतिम संस्कार लखनऊ के भैंसाकुंड श्मशान घाट पर किया गया। परिजनों के साथ-साथ बड़ी संख्या में साहित्यकारों, बुद्धिजीवियों, नेताओं और सामाजिक संस्था के लोगों ने महान विभूति को अश्रुपूर्ण विदाई दी। शुक्ल के सबसे बड़े पुत्र ने उन्हें मुखाग्नि दी। शुक्ल को सांस लेने में तकलीफ के बाद 16 अक्टूबर को अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के अतरौली में 31 दिसम्बर 1925 को जन्मे शुक्ल को हिंदी साहित्य में कथा और व्यंग्य लेखन के लिए जाना जाता है। प्रसिद्ध उपन्यास ‘राग दरबारी’ के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया था। उन्हें 2008 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था।

शुक्ल को 2009 के लिए 45वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। ‘राग दरबारी’ के अलावा ‘मकान’, ‘सूनी घाटी का सूरज’, ‘पहला पड़ाव’, ‘अज्ञातवास’ तथा ‘विश्रामपुर का संत’ आदि श्रीलाल शुक्ल की अन्य चर्चित रचनाएं हैं।

शुक्ल लम्बे समय से बीमार थे। उनकी खराब तबीयत के मद्देनजर उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बी.एल. जोशी ने 18 अक्टूबर को अस्पताल की आईसीयू में जाकर उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया था।

उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने शुक्ल के निधन पर दुख व्यक्त करते हुए इसे हिंदी साहित्य जगत के लिए अपूरणीय क्षति बताया है।

उनके सान्निध्य में रहे वरिष्ठ कथाकर एवं ‘तद्भव’ पत्रिका के सम्पादक अखिलेश ने आईएएनएस से कहा, “शुक्ल जी के निधन के बाद मैंने तो आज अपना सरपरस्त खो दिया है। एक लेखक के रूप में मेरे मन में उनके लिए गहरा आकर्षण था।”

उन्होंने कहा कि शुक्ल जी एक ऐसे लेखक थे जिन्होंने लोकतंत्र की बहुत गहरी व्याख्या की। उतनी शिद्दत से कटाक्ष करने वाला लेखक शायद ही अब दुनिया को मिले। वह सही मायने में एक महान लेखक थे।

प्रसिद्ध साहित्यकार प्रियंवद ने कहा, “शुक्ल जी का निधन हिंदी साहित्य के लिए अपूरणीय क्षति है। हिंदी साहित्य में उन्होंने जो स्थान बनाया, उसकी कभी भरपाई नहीं हो सकती है। शुक्ल जी अपनी रचनाओं में भारतीय गांवों के यथार्थ को बेहद खूबसूरत ढंग से पेश किया। उन्हें अपने समय की बहुत गहरी समझ्झ थी।”

शुक्ल को ‘राग दरबारी’ जैसी कालजयी रचना के लिए जाना जाता है। इस कृति में उनके धारदार राजनीतिक व्यंग्य ने उपन्यास विधा को नया कलेवर और एक नई दिशा दी। ‘राग दरबारी’ के अलावा ‘मकान’, ‘सूनी घाटी का सूरज’, ‘पहला पड़ाव’, ‘अज्ञातवास’ तथा ‘विश्रामपुर का संत’ आदि श्रीलाल शुक्ल की अन्य चर्चित रचनाएं हैं।

समकालीन हिंदी कथा साहित्य को नया आयाम देने वालों में शुमार श्रीलाल शुक्ल की तीक्ष्ण व्यंग्य दृष्टि के कारण साहित्य जगत में उनकी अलग पहचान है। जिस उपन्यास ‘राग दरबारी’ से उन्हें ख्याति मिली उसकी विशिष्टता भी आम बोलचाल की भाषा में नौकरशाही पर व्यंग्यपूर्ण कटाक्ष ही है और लोकप्रियता की वजह भी। वह प्रांतीय लोक सेवा आयोग (पीसीएस) अधिकारी रहे हैं।

उत्तर प्रदेश सरकार के वरिष्ठ अधिकारी के तौर पर अर्जित अपने अनुभवों को शुक्ल ने सहज ढंग से प्रचलित आंचलिक शब्दों के माध्यम से चित्रित किया। यही वजह है कि उनकी यह कृति बौद्धिक वर्ग से लेकर साधारण तौर पर शिक्षित पाठकों के बीच भी समादृत हुई।

परिवेशगत यथार्थ को उपयुक्त कथा-भाषा देने में सिद्धहस्त श्रीलाल शुक्ल का अंतिम प्रकाशित उपन्यास है ‘विश्रामपुर का संत’। इसके बाद उन्होंने एक और उपन्यास का लेखन प्रारम्भ किया था जिसे खराब स्वास्थ्य के कारण वह पूरा नहीं कर पाए।

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