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भाजपा कार्यकारिणी की बैठक में मोदी के नहीं आने पर सफाई देती रही भाजपा

नई दिल्ली ।। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार से शुरू हुई भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के पहले दिन आखिरकार नहीं आए।

इस अनुपस्थिति ने पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और मोदी के बीच के मनमुटाव को और बल दे दिया। पार्टी ने केंद्र सरकार पर हमला बोला तो जरूर लेकिन पहले दिन मुद्दे गौण हो गए पूरी भाजपा मोदी पर सफाई देती नजर आई। न आकर भी अप्रत्यक्ष रूप से मोदी ने अपनी उपस्थिति दर्ज करा ही दी।

मोदी भले ही बैठक में न आए हो लेकिन पहले दिन चर्चा उन्हीं की रही। पहली उनकी अनुपस्थिति और आडवाणी के साथ मनमुटाव और दूसरी प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी पर उनकी दावेदारी। कुछ नेताओं ने उनके समर्थन में बयान दिया तो कुछ ने उन्हें गुजरात तक ही सीमित रहने की बात कही तो कुछ टोलमोल जवाब देकर मुद्दे का टालने में लगे रहे।

खुलकर सामने आया मतभेद :-

कल तक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल में मतभेद होने का दावा करने वाली भाजपा पहले ही दिन पार्टी में मतभेद की खबरों पर सफाई देती नजर आई। मोदी तो नहीं आए। उनके अलावा पार्टी के दो पूर्व मुख्यमंत्री- बी. एस. येदियुरप्पा और रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ भी बैठक में नहीं पहुंचे।

पार्टी प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने पहले यह कहकर मामले को टालने की कोशिश की कि सभी आएंगे, लेकिन बाद में उन्होंने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि मोदी ने नवरात्र का उपवास रखा है, इसलिए वह नहीं आ पाए। उन्होंने मोदी के नाराज होने से इंकार किया।

वहीं, येदियुरप्पा की अनुपस्थिति पर प्रसाद ने बताया कि येदियुरप्पा को अपनी दिवंगत पत्नी के लिए पूजा करनी थी, इसलिए वह बैठक में शामिल नहीं हो पाए। उन्होंने हालांकि निशंक की अनुपस्थिति के कारण के बारे में नहीं बताया।

येदियुरप्पा खनन घोटाले में लोकायुक्त की रिपोर्ट के बाद मुख्यमंत्री पद से हटाए गए, जबकि उत्तराखण्ड में इसी महीने निशंक की जगह एकबार फिर बी. सी. खंडूरी मुख्यमंत्री बनाए गए हैं।

मोदी बनाम आडवाणी हुई कार्यकारिणी :-

सद्भावना मिशन के बहाने गुजरात में तीन दिनों का उपवास रखकर मोदी ने खुद की प्रधानमंत्री पद की दावेदारी सम्बंधी अटकलों को तेज कर दिया था। इसके बाद जब आडवाणी ने नागपुर में संकेत दिए कि वह प्रधानमंत्री पद की दावेदारी में नहीं हैं तब मोदी की दावेदारी की अटकलों को और बल मिला।

इसी बीच, आडवाणी ने अपनी रथयात्रा बिहार से आरम्भ करने की घोषणा कर डाली जबकि पहले वह गुजरात से इसे निकालने वाले थे। पार्टी सूत्रों का कहना है कि मोदी आडवाणी द्वारा अपनी ‘जनचेतना यात्रा’ बिहार से शुरू करने के फैसले से नाराज हैं। आडवाणी की यह देशव्यापी यात्रा 11 अक्टूबर को बिहार से शुरू होने वाली है, जहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उनकी यात्रा को हरी झंडी दिखाएंगे। आडवाणी की यात्रा 18 राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों से होकर गुजरेगी।

पार्टी प्रवक्ता बलवीर पुंज ने यह कहकर कि मौका मिलने पर मोदी सबसे अच्छे प्रधानमंत्री साबित हो सकते हैं, इस मामले को कार्यकारिणी के पहले ही दिन तूल दे दिया।

मोदी की प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी की दावेदारी के बारे में पूछे जाने पर रविशंकर प्रसाद ने कहा, “वह बहुत योग्य राष्ट्रीय नेता और मुख्यमंत्री हैं, जिनके अच्छे प्रशासन की तारीफ न केवल भारत बल्कि विदेशों में भी हो रही है। वह निश्चित रूप से प्रधानमंत्री पद के लिए हमारी पार्टी के मुख्य दावेदारों में से एक हैं। लेकिन इस बारे में निर्णय अंतत: पार्टी संसदीय बोर्ड करेगा।”

उपाध्यक्ष विनय कटियार ने कहा कि मोदी को अपने राज्य पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

कटियार ने कहा, “गुजरात में बहुत सारी समस्याएं हैं। मोदीजी अच्छा काम कर रहे हैं लेकिन उन्हें पहले अपने राज्य पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और स्थिति को बेहतर बनाना चाहिए। मोदी को पहले गुजरात में मसलों को सुलझाने दें उसके बाद पार्टी इस बारे में सोचेगी कि आगे क्या किया जाना है।”

छह साल बाद कार्यकारिणी में पहुंचे संजय जोशी :-

कार्यकारिणी की बैठक में एक ओर जहां मोदी शामिल नहीं हुए, वहीं पार्टी में उनके धुर विरोधी माने जाने वाले संजय जोशी ने बैठक में शिरकत की। वह छह साल बाद कार्यकारिणी की बैठक में शामिल हुए। 2005 में भोपाल में हुई पार्टी कार्यकारिणी की बैठक में मोदी के विरोध के कारण जोशी कार्यसमिति में शामिल हुए बगैर बैरंग लौटे थे। इसके बाद उन्होंने भाजपा की किसी भी राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में हिस्सा नहीं लिया था।

भाजपा प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर से जब यह पूछा गया कि क्या उमा भारती और जोशी भी कार्यकारिणी में शामिल हो रहे हैं, उन्होंने कहा, “बैठक पार्टी के नेताओं के लिए है और इसमें सभी नेता शामिल होंगे।”

पार्टी सूत्रों ने आईएएनएस को बताया कि उमा भारती शनिवार को कार्यकारिणी में हिस्सा लेंगी।

संसाधनों की लूट बना भ्रष्टाचार का जरिया :- गडकरी

पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में सत्तारूढ़ संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि इस सरकार ने प्राकृतिक संसाधनों की अंधाधुंध लूट को भ्रष्टाचार का जरिया बना लिया है। सरकार जमीन, पानी यहां तक कि स्पेक्ट्रम की लूट कर रही है और सत्ता में बने रहने के लिए हर तरह के समझौते कर रही है। सरकार खुद एक समस्या बन गई और उसे आम चुनावों में पराजित कर इस समस्या का समाधान करना है।

उन्होंने कहा, “लम्बे समय से सत्ता का फायदा उठाने की आदी बन चुकी कांग्रेस अब सत्ता के बिना नहीं रह सकती। सत्ता में बने रहने के लिए वह हर तरह के समझौते करती है। प्राकृतिक संसाधनों की अंधाधुंध लूट संप्रग सरकार के भ्रष्टाचार का मुख्य जरिया बन गई है। जमीन, पानी और अब स्पेक्ट्रम की भारी लूट की जा रही है।”

उन्होंने कहा, “संप्रग सरकार की छवि सर्वाधिक निम्न स्तर पर पहुंच चुकी है। सरकार में नेतृत्व का गम्भीर संकट है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अधिकारविहीन बना दिया गया है। मंत्री एक-दूसरे से भिड़ते दिखाई दे रहे हैं। चुनौतियों के समाधान की क्षमता कांग्रेस खो चुकी है और इस तरह वह खुद भी एक समस्या बन चुकी है। अगले चुनावों में उसे पराजित कर पार्टी इस समस्या का समाधान करेगी।”

गडकरी ने कहा कि भ्रष्टाचार में शामिल किसी भी व्यक्ति के लिए भाजपा में कोई जगह नहीं है। भ्रष्टाचार के मामले में पार्टी कतई बर्दाश्त नहीं की नीति अपना रही है। उन्होंने कहा कि हमारी राज्य सरकारें शासन में जवाबदेही और पारदर्शिता में सुधार लाने के लिए महत्वपूर्ण उपाय कर रही हैं। हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड और उत्तराखण्ड की सरकारें इस दिशा में काम कर रही हैं।

अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री के बावजूद सरकार असहाय :- जेटली

वरिष्ठ नेता अरुण जेटली ने महंगाई, गरीबी और आर्थिक विकास को लेकर संप्रग सरकार को जमकर कोसा। उन्होंने सरकार पर आर्थिक मोर्चे पर विफल होने का आरोप लगाया।

जेटली ने कहा कि आर्थिक मोर्चे पर सरकार असहाय नजर आती है। प्रधानमंत्री पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा कि अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री होने के बावजूद देश की यह स्थिति चिंताजनक है।

जेटली ने कहा, “उच्च मुद्रास्फीति के कारण विकास दर गिरती जा रही है। प्रशासन में गहरे पैठ बना चुके भ्रष्टाचार के कारण निवेशकों का भरोसा कम होता जा रहा है, जिससे आर्थिक गतिविधियों में कमी आई है, जबकि आधारभूत संरचना का निर्माण रुक गया है, रोजगार खत्म हुए हैं, राजस्व में कमी आई है।”

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