गुजरात के काठियावाड़ में स्थित सोमनाथ मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक है। भगवान शिव के मंदिरों में सोमनाथ मंदिर सबसे प्रमुख व अद्भुत मंदिर है। प्राचीन काल से ही सोमनाथ मंदिर देश के सबसे धनी मंदिरों में शुमार था। भगवान शिव के इस खूबसूरत तीर्थस्थल से इतिहास की कई दिलचस्प बातें जुड़ी हुई हैं जिनके बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं।
सोमनाथ मंदिर के दर्शन
किवदंती है कि स्वयं चंद्र देव यानि चंद्रमा ने अपने श्राप से मुक्ति पाने के लिए इसी स्थान पर भगवान शिव की आराधना की थी। इस तीर्थस्थल के दर्शन करने से भक्तों के क्षय तथा कोढ़ आदि रोग हमेशा के लिए खत्म हो जाते हैं।
रोगों के नाश के लिए इस मंदिर में भक्तों की भीड़ लगी रहती है। पाप के नाश के लिए भी इस मंदिर में भगवान शिव के दर्शन के लिए भक्त और श्रद्धालु आते हैं। इस कारण इस तीर्थस्थल को ‘पापनाशक तीर्थस्थल’ कहा जाता है।
सोमनाथ मंदिर की स्थापत्य कला
सोमनाथ मंदिर के भू-गर्भ में सोमनाथ लिंग की स्थापना की गई है। इस मंदिर में पार्वती, सरस्वती देवी, लक्ष्मी, गंगा और नन्दी की सुंदर मनोरम मूर्तियां स्थापित हैं।
सोमनाथ मंदिर निर्माण
ऋग्वेद के अनुसार सोमनाथ मंदिर का निर्माण स्वयं चंद्रदेव सोमराज ने किया था। ऐसी मान्यता है कि श्रीकृष्ण ने देह त्यागकर यहीं से वैकुंठ गमन किया। इस स्थान पर बडा ही सुन्दर कृष्ण मंदिर बना हुआ है। इस कारण भी इस स्थान का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है।
सोमनाथ मंदिर की खासियत
इस मंदिर के पास ही एक सोमकुंड भी स्थित है जिसमें स्नान करने से श्रद्धालुओं को अपने सभी पापकर्मों से मुक्ति मिलती है।
- असाध्य रोगों से मुक्ति पाने के लिए भी इस कुंड में स्नान का बहुत महत्व है।
- मंदिर में हर शाम को साउंड एंड लाइट शो द्वारा सोमनाथ मंदिर के इतिहास का सुंदर चित्रण किया जाता है।
- दुनियाभर में ये मंदिर अपनी अकूट संपत्ति और सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध हुआ करता था।
- सोमनाथ मंदिर के दक्षिण में एक स्तंभ स्थित है।
जिसपर एक तीर रखकर संकेत किया गया है कि सोमनाथ मंदिर और दक्षिण ध्रुव के बीच में प्रथ्वी का कोई भाग नहीं है। सोमनाथ मन्दिर में भी गैर हिन्दुओं का प्रवेश वर्जित है।
सोमनाथ मंदिर का इतिहास
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार राजा दक्ष के दामाद चंद्र देव ने उनकी आज्ञा की अवहेलना की थी जिस कारण राजा दक्ष ने उन्हें श्राप दिया कि उनका प्रकाश दिन-प्रतिदिन धूमिल होता जाएगा। श्राप के उपाय हेतु सोमदेव ने सरस्वती के मुहाने पर समुद्र में स्नान कर के भगवान शिव की आराधना की। प्रभु शिव यहां पर अवतरित हुए और उनका उद्धार किया व भगवान शिव सोमनाथ के नाम से यहीं बस गए।
मान्यता है कि कृष्ण के रूप में जन्मे भगवान कृष्ण ने इसी स्थान पर अपनी देह का त्याग किया था। भालुका तीर्थ पर श्रीकृष्ण विश्राम कर रहे थे कि तभी एक शिकारी ने उनके पैर के तलुए में पद्मचिह्न को हिरण की आंख समझकर तीर मार दिया। बस इसी तीर से घायल होकर श्रीकृष्ण ने देह त्यागकर वैकुंठ की ओर गमन किया। इस स्थान पर अब बहुत विशाल और सुंदर मंदिर बना हुआ है।
सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण
8वीं सदी में मंदिर की संपन्नता की खबर सिंध के अरबी गवर्नर जुनायद तक पहुंची और उसने इसे नष्ट करने के लिए अपने सेना भेजी। इसके बाद प्रतिहार राजा नागभट्ट ने 815 ईस्वी में तीसरी बार इसका पुनर्निर्माण करवाया।
सन् 1024 में महमूद गजनवी ने अपने 5 हज़ार सैनिकों के साथ सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण किया था।
उसने इस मंदिर की सारी संपत्ति को लूटकर इसे नष्ट कर दिया था। उस समय में 50 हज़ार लोग मंदिर के अंदर पूर्जा अर्चना कर रहे थे। उन सभी का गजनवी ने कत्ल कर दिया था। कहा जाता है कि ये सभी लोग इस बात के आश्वासन में थे कि भगवान शिव उनकी रक्षा करेंगें। अगर वो गजनवी की सेना का मुकाबला करते तो ऐसा ना होता क्योंकि ईश्वर भी भाग्य के भरोसे बैठने वालों का नहीं बल्कि कर्म करने वालों का साथ देता है।
मंदिर में स्थापित शिवलिंग को कई बार खंडित किया गया। आगरा के किले में रखे देवद्वार सोमनाथ मंदिर के ही हैं जिसे महमूद गजवनी सन् 1026 में लूटपाट के दौरान अपने साथ ले गया था। इस मंदिर पर 17 बार आक्रमण हो चुका है।
ऐतिहासिक काल में ये मंदिर बहुत समृद्ध हुआ करता था और इसी वजह से इसे कई बार तोड़ा तथा पुनर्निमित किया गया था। आज जो मंदिर खड़ा है उसका निर्माण स्वतंत्रता के पश्चात् भारत के लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने करवाया था और 1 दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति शकर दयाल शर्मा ने इसे भारत को समर्पित किया।
कैसे पहुंचे सोमनाथ मंदिर
- गुजरात के सोमनाथ मंदिर पहुंचने के लिए दीऊ एयरपोर्ट सबसे निकटतम हवाई अड्डा है।
- सोमनाथ रेलवे स्टेशन से बस-टैक्सी की सुविधा हर समय उपलब्ध होती है।
चूंकि ये मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इस स्थान पर भगवान कृष्ण ने भी अपने प्राण त्यागे थे इसलिए इस पवित्र स्थान का बहुत महत्व है। खास बात तो ये है कि इस मंदिर में आकर ना केवल भक्तों की मुरादें पूरी होती हैं बल्कि असाध्य और कुष्ठ रोगों से भी मुक्ति मिल जाती है।
अगर आप भी किसी रोग या पीड़ा से ग्रस्त हैं तो इस मंदिर में आकर भगवान शिव का आशीर्वाद जरूर लें। यही वो स्थान है जहां चंद्र देव को अपनी कुरुपता और कुष्ठ रोग से मुक्ति मिली थी। उसी समय से ये स्थान रोगों से मुक्ति पाने के लिए विशेष बन गया था।